"दैनिक ध्यान के माध्यम से, मुझे एक ऐसी आंतरिक शांति मिली है जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। इसने मेरी चिंता को शांत आत्मविश्वास में बदल दिया है।"
अमित सिंह
स्थूल जगत जिसको हम देख सकते हैं पृथ्वीलोक पर रहने वाले प्राणी जिसको हम देख सकते हैं स्थूल जगत मे...
ब्रह्माण्ड सम्पूर्ण समय, अन्तरिक्ष और उसकी अन्तर्वस्तु को कहते हैं। ब्रह्माण्ड में सभी ग्रह, तारे, ...
स्वर्ग लोक या देवलोक हिन्दू मान्यता के अनुसार ब्रह्माण्ड के उस स्थान को कहते हैं जहाँ हिन्दू देवी-देवताओं...
वायु गमन या वायु सिद्धि, या प्राण सिद्धि एक ऐसी अवस्था है जब कोई व्यक्ति केवल कुम्भक को आसानी से रोक सकता...
अंतःकरण हिन्दू दर्शन में एक अवधारणा है, जो मन की समग्रता को संदर्भित करती है, जिसमें सोच क्षमता, मन...
हिन्दू दर्शन में जीवन शक्ति को प्राण कहा जाता है। इसे सूर्य से उत्पन्न और पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त शक्ति के रूप...
किसी व्यक्ति की आत्मा का किसी अन्य व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करना या कराना ही परकाया प्रवेशाया प्रवेश...
औरा व्यक्ति के आभामंडल को कहते हैं। हर व्यक्ति का अपना एक प्रभाव होता है और उसमा का ...
आस क्रिया योग आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का एक बहुत शक्तिशाली तरीका है आस क्रिया योग ऊर्जा और सांस नियंत्रण, या प्राणायाम की एक प्राचीन ध्याने में मदद कर सकता है।
आत्म साक्षात्कार या सेल्फ-रियलाइजेशन एक आनंदमय अनुभव होता है, जब आप अपने आत्मा को अनुभव करते हैं। इसके लिए निम्नलिखित कुछ विधियां है
हम अक्सर लोगों से सुनते हैं कि आत्मा ही परमात्मा है, किंतु आत्मानुभव और परमात्मा की अनुभूति का अनुभव आत्म साक्षात्कार से ही होता है। आत्म साक्षात्कार का मतलब होता है खुद को जानना, समझना और पहचानना। शांति आत्म साक्षात्कार की कुंजी है।
हिन्दू धर्मग्रंथों में दो तरह की विद्याओं का उल्लेख किया गया है परा और अपरा। धर्म में उल्लेखित यह परा और अपरा ही लौकिक और पारलौकिक कहलाती है।
आत्म-साक्षात्कार का अर्थ है ईश्वर के सम्बन्ध में अपनी स्वाभाविक स्थिति को जानना। जीव (आत्मा) ईश्वर का अंश है और उसकी स्थिति ईश्वर की दिव्यसेवा करते रहना है। ब्रह्रा के साथ यह दिव्य सान्निध्य ही ब्रह्म-संस्पर्श कहलाता है।
योग में ध्यान की एकाग्रता आवश्यक होती है। व्यक्ति एकांत में बैठकर एकाग्र होकर आत्म चिंतन या आत्म साक्षात्कार करे इसका अर्थ है अपने मन से बात करना, मन से विमर्श करना आदि ।
मानव शरीर ऊर्जा का भंडार है। इस ऊर्जा का उपयोग सद्कार्यों में करते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। जरूरत सिर्फ उस ऊर्जा को जगाने तथा उसे सद्कार्यों में लगाने की है।
ब्रह्माण्ड में ईश्वर की अनन्त शक्तियाँ बिखरी हुई हैं. उनमें से जिन जीवनोपयोगी वस्तुओं की आवश्यकता होती है, उन्हें मनुष्य अपने प्रबल पुरुषार्थ द्वारा प्राप्त कर लेता है।
"दैनिक ध्यान के माध्यम से, मुझे एक ऐसी आंतरिक शांति मिली है जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। इसने मेरी चिंता को शांत आत्मविश्वास में बदल दिया है।"
अमित सिंह
"ध्यान ने मुझे स्वयं से फिर से जुड़ने और हर पल में उपस्थित रहने में मदद की है। मेरे दैनिक जीवन का तनाव अब बहुत हल्का महसूस होता है।"
अंकिता ठाकुर
"गाइडेड ध्यान सत्र शुरू करने के बाद, मैंने अपनी नींद और समग्र भलाई में महत्वपूर्ण सुधार देखा है। यह मेरे मन के लिए एक दैनिक रीसेट की तरह है।"
जगमोहन
"ध्यान कार्यक्रमों ने मेरी ज़िंदगी बदल दी है। मैंने आभार और धैर्य की गहरी भावना विकसित की है, जिसने मेरे रिश्तों में सुधार किया है।"
अंकार अग्रवाल
"ध्यान ने मेरे लिए उपचार का एक रास्ता खोला है। मुझे अपने आस-पास की दुनिया से अधिक जुड़ा हुआ महसूस होता है और जीवन की चुनौतियों से कम अभिभूत महसूस करता हूँ।"
सुमित ठाकुर
जैसे एक हल्की धारा भूमि को पोषित करती है, वैसे ही ध्यान आत्मा को शांति और संतुलन से समृद्ध करता है।
जैसे एक शांत नदी जीवन को बनाए रखती है, वैसे ही ध्यान मस्तिष्क और आत्मा के लिए आवश्यक शांति प्रदान करता है।
जैसे एक नदी पृथ्वी को जीवन देती है, वैसे ही ध्यान हमारे अस्तित्व को स्पष्टता और आंतरिक सामंजस्य से भर देता है।